वे मिट्टी में दब कर उग आते हैं
SOCH
मीडिया के पाठक की
Friday, 4 February 2011
मिस्र में जनतांत्रिक विद्रोह, क्रान्तिकारी कवि पाश की कविता के साथ
वे मिट्टी में दब कर उग आते हैं
Thursday, 27 January 2011
लोकतंत्र का मुखौटा बनती न्यायपालिका
Thursday, 9 December 2010
धारावाहिकों का सफरनामा
Thursday, 22 July 2010
बूंद की दस्तक
किसी ने दरवाजे पर दस्तक दी हो
दरवाजा खोला तो पाया
बारिश की बूंदे अपने साथ
खेलने के लिए बुला रही है
मेरे अल्हड से अलसाये से मन को
मानो ख़ुशी का इक पयाम सा मिल गया हो
मै भी उनके साथ हो लिया
कभी उन्हें अपनी हथेलियों पर बसा लेता
कभी वो मेरी पलकों पर आकर
मेरी पलकों को बंद करने पर अमादा होती
नीचे गिरती हुई बूंदों को देखा
लगा जैसे आसमान से सरे तारे
जमी पर आकर टिमटिमाने लगे हो
उनमे उठती हुई छोटी छोटी लहरे
एक दूसरे से मिलने के लिए बेताब हो
फूलो पर पड़ी बूंदों को देखकर ऐसा लगा
मनो किसी सुहागन ने बिंदी लगायी हो
आसमान की तरफ आखे उठा कर देखा
कितनी दूर से चली आ रही है मेरे पास
शायद ये मेरे लिए आयीं है
साथ में कुछ संदेसा भी लायी है
एक बूंद ने मेरे कान में इठला के कहा
मुझे संभाल कर रखना अपने पास
वरना अगले बरस हम न आयेगे
Friday, 28 May 2010
इक हमराही....
रात दिन चलता है राही मंजिल की चाह में कभी अकेले कभी साए के साथ में
जब मिल जाता है उसे कोई हमराही
तब लगता है रास्ता नहीं मंजिल है यही
भूल जाता है जिन्दगी की सब तलातुम
खो जाता है इक हसींन सफ़र में
लेकिन वह भूल जाता है की यह भी
हमारी तरह ही इक राही है
उसकी भी कुछ मंजिल है कुछ सपने है
जो उसकी जिन्दगी है उसके अपने है
हम चाह कर भी उसे अपना बना नहीं पाते
वो तो बस कुछ पल का साथी है
लेकिन यही कुछ समय का सफ़र
कभी किसी मुसाफिर के लिए
पूरी जिन्दगी ही बन जाता है
फिर भी वह अकेला ही जिन्दगी की राह में
चलता जाता है क्योकि मुसाफिर है वह
चलना ही है उसका काम है
तुम भी चल रहे हो, मै भी चलूगा....सब चलेंगे
Thursday, 18 February 2010
लोकतंत्र पर मोदी की मार
सभी के लिए समानता एवम स्वतंत्रता के लिए संग्घर्ष करने वाले राष्ट्रपिता की जन्मस्थली पर इस प्रकार का बाध्यकारी कानून संविधान की अवहेलना करना वाला है . मोदी सरकार की मुस्लिम विरोधी नीतियों , गुजरात दंगे और इस तरह के फरमान को देख कर लगता है की मोदी गुजरात में एकछत्र राज चाहते है . और शायद भविष्य में ऐसा भी हो सकता है की गुजरात से अलगाववादी की आग उठने लगे और एक अलग देश की मांग हो.
Saturday, 13 February 2010
मोहब्बत की इबादत
जीयो तो ऐसे जीयो की दूसरो को जीने का ढंग बतला दो
क्योकि खुदा की खुदाई से मिलती है मोहब्बत
इस जिन्दगी को मोहब्बत पर वार दो
झूठ साबित कर दो मोहब्बत के शेरो को
दीवानगी को भी कामयाब कर दो
एक बार भीर बता दो हीर रांझे की दास्ता
मोहब्बत को फिर से पाक कर दो
Saturday, 21 November 2009
जज्बातों का कारवा
Saturday, 22 August 2009
जिन्ना की जयकार, संग में हाहाकार
'जिन्ना: भारत विभाजन के आईने में' , जसवंत सिंह द्वारा लिखी गई किताब ने संघ की भ्रमित विचारधारा को जनता के सामने लाकर हंगामा बरपा दिया है । कभी लाल कृष्ण आडवानी पकिस्तान में जाकर जिन्ना की जयकार करते है तो कभी जसवंत सिंह किताब लिखकर जिन्ना को नायक और नेहरू , पटेल को खलनायक की पदवी देते है , लेकिन ये इस बात को भूल जाते है की ये जिस विचारधारा के ईटो से संघ की नीव पड़ी है , जिन्ना के जयकार से वो ईट उखड जायेगी । आडवानी जी भाजपा के वरिस्ट नेता होने के कारण एसा बयान देने पर बच निकले लेकिन जसवंत सिंह जो पार्टी के हनुमान कहे जाते है जिन्ना रूपी सागर को नही लाँघ पाए और उन्हें पार्टी से निकाल दिया गया .जसवंत सिंह ने यह किताब क्या सोच कर लिखा यह समझ से परे है , क्योके आडवानी का उदाहरण उनके सामने था।यह जसवंत सिंह का पार्टी प्रेम था या यक्तिगत सोच। किताब में नेहरू , पटेल समेत कांग्रेस पार्टी के नेताओ को विभाजन में खलनायक की भूमिका में दिखाया गया है और शायद यह आज के कांग्रेश पार्टी पर निशाना हो। ऐसा है तो यह पार्टी प्रेम ही है और अगर यह जसवंत सिंह के यक्तिगत सोच है तो उन्हें पार्टी से अलग हो जाना चाहिये। खैर अब जसवंत सिंह संघ से यही पूछेंगे की.......................
हंगामा है क्यो बरपा , थोडी सी जो लिख दी है
हाय रे……अह्हले वतन
महात्मा गांधी, भगत सिंह , राज गुरु , सुखदेव, आजाद , चाचा नेहरू …. न जाने कितने ही स्वतंत्रता सेनानियों ने इस दिन के लिए अपने प्राणों की बलि दे दी . इस दिन आजाद भारत की इक तस्वीर दुनिया के सामने रखी गई । 15 अगस्त 2009 , आज के दिन के मायने लोगो के लिए बदल चुके है . सरकारी कर्मचारियों के लिए छुट्टी का दिन , नीजी कंपनियों के लिए एक पार्टी मनाने का अवसर , बाज़ार में ख़राब हो गई वस्तुओ को सस्ते दामो में निपटाने का दिन , नेताओं के लिए समाचार पत्रों में हार्दिक बधाई देने का दिन ,कुछ देश भक्ति गाने बजाने का दिन , स्कूली बच्चो को घूमने का दिन ……….. कितनी अलग सोच थी स्वतंत्रता सेनानियों की हमसे, हम फायदे की सोचते है तो स्वतंत्रता सेनानी कायदे की सोचते थे . फिर कैसे हम उनकी सोच को, उनके देखे हुए सपने को आगे ले जायेगे……ले जायेगे जैसे सब हो रहा है ये भी होगा . आख़िर 15 अगस्त के दिन देश भक्ति गाने बजाने वाले, बन्दे मातरम का नारा देने वाले, जय हो का नारा देने वाले ये तो सोचेगे ही। अपने अहले वतन के लिय ऐ ………….
Sunday, 7 December 2008
मजहब का किरदार चाहता हू ........
पहचान चाहता हू ,
आज मै किसी मजहब का
किरदार चाहता हू ।
मुझे डर है की जात पात के
इस दंगे में मै कही खो न जाऊ,
आज सिर्फ़ नाम से
कोंन किसको जनता है
आज धर्म के पीछे ही
पूरा विश्व भागता है।
हिंदू -मुस्लिम के दंगे में
सिख होने पर बच जाऊँगा,
सिख ईसाई के दंगे में
मुस्लिम होने पर बच जाऊंगा,
लेकिन बना रहा मै इंसान
तो हर दंगे में मै ही मारा जाऊंगा।
आज किस्से करू मै
अहले वतन की बाते ,
सब करते है सिर्फ़
अपने मजहब की बाते।
किसको सुनाऊ मै
प्रेम शौहार्द की बाते,
सब देते है सिर्फ़
मजहबी दंगे की शौगाते।