LATEST:


विजेट आपके ब्लॉग पर

Thursday 27 January 2011

लोकतंत्र का मुखौटा बनती न्यायपालिका

बोल की लब आजाद हैं तेरे/बोल जबां अब तक तेरी है, तेरा सुतंवा जिस्म है तेरा/बोल कि जां अब तक तेरी है। फैज की इन पंक्तियों में एक जोश  और अभिव्यक्ति की ताकत का अन्दाजा लगता है। एक ऐसी अभिव्यक्ति की स्वतंन्त्रता जिस पर आज सरकार प्रत्यक्षय या परोक्ष रूप से पाबंदियां लगाने का अनवरत प्रयास कर रही है और यह कोशिस उन मासूम आदिवासियों और शोषित वर्ग के खिलाफ कर रही है, जिनको इस अभिव्यक्ति की जरूरत सबसे ज्यादा है न कि उस पूंजीवादी समाज व ग्लोबल गांव के देवताओं को, जो अपनी बात किसी भी तरीके से मनवा लेते है। ऐसे ही कुछ हालात छत्तीसगढ़ में देखने को मिले हैं। जहां पर इन गरीब व शोषित आदिवासियों  की मदद करने वालों को आतंकी घोषित कर देशद्रोह
का आरोप लगा उन्हें जेल में कैद कर दिया जाता है।
रायपुर की अदालत ने 24 दिसम्बर 2010 को आईपीसी की धारा 124ए के तहत विनायक सेन को रास्टद्रोह का दोषी  मान आजीवन कारावास की सजा मुकर्रर कर दी। डा0 विनायक सेन पर भाकपा माओवादी की मदद करने का आरोप पुलिस ने कथित नक्सली नेता नारायण सान्याल के जेल में मिलने के आधार पर लगाया है। जबकि डा0 विनायक सेन ने मानवाधिकार संस्था पीपुल्स यूनियन फॉर  सिविल लिबर्टीज के उपाध्यक्ष रहते हुए जेल में बंद आरोपी के स्वास्थ कारणों से भेंट की थी जो कि जेल अधीक्षक की उपस्थिति में होती थी। अभियोजन पक्ष के वकील अदालत में कार्ल मार्क्स के दास कैपिटल को दुनिया की सबसे खतरनाक किताब होने की दलील देते हैं और डा0 विनायक सेन पर राजद्रोह और साजिश  रचने का आरोप लगाते हैं। ऐसी ही कुछ बेतुकी दलील दे देकर उन्हें राजद्रोही घोषित कर दिया जाता है। यह दलीले तो सिर्फ एक बहाना मात्र जान पड़ती है। जो किसी लोकतांत्रिक देश  में न्यायिक प्रक्रिया को लोकतांत्रिक मुखौटा लगाये रखने में मद्द करती है, लेकिन इसकी पीछे की कहानी पूंजीपति वर्ग लिखता है। जिसके अधीन ये मुखौटे काम करते है
बीती चार जनवरी को 61 साल के हुए सेन 30 साल पहले प्रतिस्ठित वेल्लोर मेडिकल कॉलेज से गोल्ड मेडल लेने के बाद आदिवासियों के बीच काम करने के लिए छत्तीसगढ़ आये थे। अमेरिका में दमक भरी नौकरी का विकल्प छोड़कर उन्होंने दिग्गज मजदूर नेता शंकर  गुहा नियोगी के साथ काम करना शुरू  किया। सेन ने बिना कोई सरकारी मदद लिए खदान मजदूरों के सहयोग से दल्लीराझरा में शहीद  अस्पताल की नींव रखी। 1990 में वे रायपुर में अपनी पत्नी इलिना से मिले। यहां उन्होंने अपने गैरसरकारी संगठन रूपातंर की शुरुआत  की। पिछले 18 सालों से यह संस्था ग्रामीणों और आदिवासियों में स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता फैलाने के साथ-साथ मोबाइल चिकित्सालय भी संचालित कर रही है।
भारत सरकार ने चेतावनी दी है कि माकपा माओवादी या उसके किसी भी अन्य संगठन का यदि कोई समर्थन करता है तो उसे गैरकानूनी गतिविधि निरोधक कानून 1967 यूएपीए की धारा 139 के तहत 10 साल की कैद हो सकती है, लेकिन विनायक सेन पर लगाया गया देशद्रोह  का आरोप किस कानून के दायरे में आता है। जिन्हें सिर्फ आदिवासियों व शोसितो  की सेवा के जुर्म में देशद्रोही घोषित  कर दिया गया। छत्तीसगढ़ में डा0 विनायक सेन की आवाज को दबाना इसलिए जरूरी समझा जाता है कि उनकी सच्चाई की आवाज से कही सलवा जुडूम जैसी सरकारी संरक्षण प्राप्त गिरोह को कोई नुकसान न हो। न्यायालय द्वारा इस तरह का फैसला देना न्याय को पुनः परिभाषित  करने पर मजबूर करता है। आखिर न्याय किसके साथ किया जा रहा, सत्ताधीन पूंजीपतियों के साथ या शोषित  आदिवासियों के साथ।
बुकर पुरस्कार प्राप्त लेखिका अरुंधती रॉय को उनके अभिव्यक्तिपूर्ण बयान पर देषद्रोह कर आरोप झेलना पड़ा। इससे पहले अमिताभ बच्चन जब नरेन्द्र मोदी के रहने पर गुजरात के ब्राण्ड अम्बेसडर बनते हैं, रतन टाटा और मुकेष अंबानी से तब कितने लोगों ने सवाल किया जब इन्होंनें गुजरात गरिमा पुरस्कार प्राप्त किया। नरेन्द्र मोदी का नाम आते  ही हमारे सामने 2002 में हुए गुजरात दंगे की भयानक तस्वीर हमारे सामने आ जाती है। जिसमें गर्भवती महिला का पेट फाड़ कर उसमें कपड़ा भर दिया जाता है।  लेकिन शायद  यह मुर्दों का शहर  है। ऐसा शहर  दुष्यन्त कुमार के पक्तियों की याद दिलाते है जिसमें उन्होंने कहा है  ‘‘इस शहर  में कोई बारात हो या वारदात, अब किसी भी बात पर खुलती नहीं है खिड़किया।’’ 

3 comments:

दस्तक said...

very nice article...!!

पहाड़ी कन्या said...

POOR JUDICIAL SYSTEM....
Nicely written article.The judicial system in India is just a puppet show dear. What we see is the game that the higher authorities ask them to play.JUSTICE IS BEING DENIED in the case of Binayak Sen, and its really a shame where helping the needy people results in unfair allegations.Each one of us will think several times before giving our helping hands to the needy...

अंतर्मन said...

article accha hai... lekin iss sandarbh mei acchnak modi ki charcha kuch samjh nahi aayaaa