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Thursday 22 July 2010

बूंद की दस्तक

सुबह आख खुली तो लगा
किसी ने दरवाजे पर दस्तक दी हो
दरवाजा खोला तो पाया
बारिश की बूंदे अपने साथ
खेलने के लिए बुला रही है
मेरे अल्हड से अलसाये से मन को
मानो ख़ुशी का इक पयाम सा मिल गया हो
मै भी उनके साथ हो लिया
कभी उन्हें  अपनी हथेलियों पर बसा लेता
कभी वो मेरी पलकों पर आकर
मेरी पलकों को बंद करने पर अमादा होती
नीचे गिरती हुई बूंदों को देखा
लगा जैसे आसमान से सरे तारे
जमी  पर आकर टिमटिमाने लगे हो
उनमे उठती हुई छोटी छोटी लहरे
एक दूसरे से मिलने के लिए बेताब हो
फूलो पर पड़ी बूंदों को देखकर ऐसा लगा
मनो किसी सुहागन ने बिंदी लगायी  हो
आसमान की तरफ आखे उठा कर देखा
कितनी दूर से चली आ रही है मेरे पास
शायद ये मेरे लिए आयीं है
साथ में कुछ संदेसा भी लायी है
एक बूंद ने मेरे कान में इठला के कहा
मुझे संभाल कर रखना अपने पास
वरना अगले बरस हम न आयेगे