जिन्होंने उम्र भर तलवार का गीत गाया है
उनके शब्द लहू के होते हैं
लहू लोहे का होता है
जो मौत के किनारे जीते हैं
उनकी मौत से जिंन्दगी का सफर शुरू होता है
जिनका पसीना और लहू मिट्टी में गिर जाता हैवे मिट्टी में दब कर उग आते हैं
अरब में इन दिनों एक अपूर्व उथल-पुथल दिखाई दे रही है। ट्यूनीशिया में जन विद्रोह के कारण 23 सालों से सत्ता पर काबिज जिने अल अबेदीन अली को देश छोड़कर भागना पड़ा। मिस्र, यमन, जार्डन में भी लगातार विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। महंगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद से तंग आकर ही लोग सड़कों पर उतरे है।
इस लहर की शुरुआत ट्यूनीशिया में 17 दिसंबर को मुहम्मद बाउजिजी नाम के एक बेरोजगार ग्रेजुएट नौजवान को पुलिस द्वारा सब्जी बेचने की इजाजत न देने से हुई। जिसके बाद से पूरे अरब में तानाशाही के विरोध का प्रतीक बन चुका है। ट्यूनीशिया से उड़ी चिंगारी, अब मिस्र में आग लगा चुकी है।
मिस्र के राष्ट्रपति होस्नी मुबारक ने अक्टूबर 1981 में अनवर सादात की हत्या के बाद ये गद्दी संभाली थी और तीन दशक से लगातार इस पर काबिज है। ट्यूनीशिया के राष्ट्रपति बेन अली की तरह वे भी अपने बेटे को अपनी कुर्सी सौपने के ख्वाहिशमंद रहे है। मुबारक के नेतृत्व में मिस्र राजनीति रूप से अमेरिकी कठपुतली बन गया है। जिससे इसका आक्रोश लोगों में और ज्यादा है।

मुबारक 82 साल के हो गए हैं और उनके सहयोगी पहले से ही इस पर विचार कर रहे थे कि उनके बाद कौन आयेगा। जो नाम सामने आ रहे थे वे मुबारक के बेटे जमाल और खूफीया के प्रमुख जनरल उमर सुलेमान के थे। मुबारक के बाद जनरल उमर सुलेमान मिस्र के सबसे ताकतवर व्यक्ति हैं। लेकिन मिस्र की जनता इन दोनों से भी नफरत करती है। सत्तारूढ़ पार्टी के बाद देश में एकमात्र संगठित राजनीतिक संगठन व विपक्षी पार्टी ‘मुस्लिम ब्रदरहुड’ है। 1928 में जब मिस्र में सैन्य कब्ज़ा हो रहा था तो उसके विरोध में मुस्लिम ब्रदरहुड अस्तित्व में आया था. जिहादियों से विपरीत मुस्लिम ब्रदरहुड एक रूढ़िवादी नरमपंथी और अहिंसक गुट है। फिलहाल यह कहना मुश्किल है कि इस जन विरोध के नायक मोहम्मद अल बरदेई होंगे या मुस्लिम ब्रदरहुड। लेकिन यह मिस्र मे एक सकारात्मक बदलाव है।
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