
80 के दशक में जितने भी धारावाहिक बने उनमें ज्यादातर की पटकथा आम लोगों के जिन्दगी से जुड़ी हुई होती थी। महिलाओं की सामाजिक भूमिका को नए रूप में परिभाषित करती ‘रजनी’, बटंवारे का दर्द बयां करता बुनियाद, दिन में सपने देखता मुंगेरीलाल और जासूसी धारावाहिक करमचंद में पंकज कपूर का डायलॉग ‘शक करना मेरा पेशा है’ वर्षों तक याद किया गया। पंकज कपूर द्वारा अभिनीत ‘मुसद्दीलाल’ के चरित्र ने ‘आफिस-आफिस’ धारावाहिक की सफलता के नये आयाम गढ़े।

सन् 1992 में देश का पहला निजी चैनल जी-टी.वी. दर्शकों को उपलब्द होने लगा। इस पर प्रसारित ‘तारा’ नामक धारावाहिक चर्चा का विषय बना। तारा की भूमिका निभाने वाली नवनीत निशान ने नारी की परम्परागत छवी को तोड़कर नये कलेवर में पेश किया। इसके बाद व्योमकेष बख्शी, तहकीकात, राजा और रैंचो, नीम का पेड़, अलिफ लैला आदि उल्लेखनीय धारावाहिक है।

सन् 2006 में धारावाहिकों ने क्षेत्रीय परम्परागत पृष्टभूमि को अपनाया। कहानियों में थोड़ा सा देशी और स्थानीय आकर्षण पैदा करने की कोशिस की गयी। इनमें मायका (पंजाबी), सात फेरे (राजस्थानी), करम अपना-अपना (बंगाली) जैसे इन्डियन धारावाहिक काफी चर्चित रहे।